Thursday, February 27, 2020

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ पर निबंध।| Beti Bachao Beti Padhao Hindi || Essay ...









प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ एक ऐसी योजना है जिसका अर्थ होता है कन्या शिशु को बचाओ और इन्हें शिक्षित करो। इस योजना को भारतीय सरकार के द्वारा कन्या शिशु के लिए जागरूकता का निर्माण करने के लिए और महिला कल्याण में सुधार करने के लिए शुरू किया गया था। इस योजना का दारोमदार तीन मंत्रालयों को सौंपा गया है, ये हैं - महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय।


बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान की आवश्यकता : देश में लगातार घटती कन्या शिशु-दर को संतुलित करने के लिए इस योजना की शुरुआत की गयी। किसी भी देश के लिए मानवीय संसाधन के रुप में स्त्री और पुरुष दोनों एक समान रुप से महत्वपूर्ण होते है।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ का उद्देश्य
: इस मिशन का मूल उद्देश्य समाज में पनपते लिंग असंतुलन को नियंत्रित करना है। इस अभियान के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध आवाज उठाई गयी है। इस अभियान के द्वारा समाज में लडकियों को समान अधिकार दिलाए जा सकते हैं।


लड़कियों के साथ शोषण होने के पीछे मुख्य कारण अशिक्षा भी है। अगर हम पढ़े-लिखे शिक्षित होते हैं तो हमें सही-गलत का ज्ञान होता है। इसीलिए ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम’ के माध्यम से बेटियों को अधिक से अधिक शिक्षित बनाने पर जोर दिया जा रहा है। शिक्षित लोगों के साथ कुछ भी गलत करना आसान नहीं होता। इसीलिए लड़की का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है।

उपसंहार : भारत के प्रत्येक नागरिक को कन्या शिशु बचाओ के साथ-साथ इनका समाज में स्तर सुधारने के लिए प्रयास करना चाहिए। लडकियों को उनके माता-पिता द्वारा लडकों के समान समझा जाना चाहिए और उन्हें सभी कार्यक्षेत्रों में समान अवसर प्रदान करने चाहिए।

Tuesday, February 25, 2020

सी. वी. रमन पर निबंध || Simple & Short Essay on CV Raman in Hindi || Nat...







सर सी० वी० रमन महान वैज्ञानिक थे। उन्होंने 'रमन इफ़ेक्ट' का अविष्कार किया। वह प्रथम भारतीय थे जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में 'नोबेल पुरस्कार' प्राप्त किया। ‘'रमन इफ़ेक्ट' की खोज 28 फ़रवरी 1928 को हुई थी। इस महान खोज की याद में 28 फ़रवरी का दिन भारत में हर वर्ष ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है| राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के दिन विभिन्न स्कूल, कालेजों एवं विज्ञान संस्थानों में वैज्ञानिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' का उद्देश्य विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रति समाज में जागरूकता लाना और वैज्ञानिक सोच पैदा करना है।



प्रारंभिक जीवन

चंद्रशेखर वेंकट रमन (सी०वी० रमन) का जन्म तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को हुआ था। उनके पिता का नाम चन्द्रशेखर अय्यर था। उनकी माता का नाम पार्वती था।

शिक्षा

चंद्रशेखर वेंकट रमन की प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में हुई।

सर सी० वी० रमन ने वर्ष 1904 में बी०ए० की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और भौतिकी विज्ञान में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। वर्ष 1907 में उन्होंने एम० ए० की परीक्षा विशिष्ट योगयता के साथ उत्तीर्ण की।

निजी जीवन

सी०वी० रमन का विवाह 6 मई 1907 को लोकसुन्दरी अम्मल से हुआ। उनके दो पुत्र थे – चंद्रशेखर और राधाकृष्णन।

कार्य
प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव की खोज

मृत्यु
अपनी प्रयोगशाला में वह कार्य करते रहे और अंत में 21 नवंबर 1970 को उनकी मृत्यु हो गई थी।

सम्मान
रमन प्रभाव के लिए उन्हें 1921 में भौतिकी नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था। 1930 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

Thursday, February 20, 2020

भगत सिंह पर निबंध || Short Essay on Bhagat Singh in Hindi || Bhagat Sing...







शहीद भगत सिंह पर हिन्दी निबंध

भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक है। उन्होंने न केवल जीवित रहते हुए स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई बल्कि अपनी मृत्यु के बाद भी कई अन्य युवाओं को इसमें शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

प्रारंभिक जीवन

'भगत सिंह' का जन्म 28 सितंबर, 1907 मेँ पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गांव (जो अभी पाकिस्तान में है) एक सिख परिवार मेँ हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।

शिक्षा

भगत सिंह बचपन से ही मेधावी थे। भगत सिंह 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। सन 1923 में भगत सिंह ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की ।

अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। काकोरी कांड में रामप्रसाद 'बिस्मिल' सहित 4 क्रांतिकारियों को फांसी व 16 अन्य को कारावास की सजा से भगत सिंह इतने ज्यादा बेचैन हुए कि चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन'। इस संगठन का उद्देश्य सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था।


लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने का उनका संकल्प

जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद लाला लाजपत राय की मृत्यु की वजह से भगत सिंह को गहरा आघात पहुँचा। लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके दोस्तों ने जॉन सांडर्स को गोलियों से भून दिया। इन्होंने केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम फेंका। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया ।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई

निष्कर्ष

भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने देश की आज़ादी के लिए जिस साहस का परिचय दिया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है, जिस कारण उनका नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है।

Wednesday, February 12, 2020

होली पर निबंध || Simple Essay on Holi in Hindi || Holi Festival Essay (F...








होली पर निबंध (Holi Essay in Hindi)

प्रस्तावना

होली हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। होली रंगों का एक शानदार उत्सव है जो भारत में हिन्दू धर्म के लोग हर साल बड़ी धूमधाम से मनाते है। होली का उत्सव हर साल पूर्ण चन्द्रमा के दिन मार्च (फागुन) के महीने में मनाया जाता है। इसे एकता, प्यार, खुशी, सुख, और जीत का त्योहार के रुप में भी जाना जाता है।

होलिका और प्रह्लाद की कहानी


होली को मनाने के पीछे भक्त प्रह्लाद की मुख्य भूमिका है। भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को उसी के पिता ने उसकी पूजा न करने पर मारने का प्रयास किया, इसके लिये उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठने को कहा क्योंकि होलिका को ये वरदान था कि वो आग में जल नहीं सकती चूंकि प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था इसलिये इस आग में उसे कोई नुकसान नहीं हुआ जबकि आशीर्वाद पायी होलिका जलकर भस्म हो गई। उसी दिन से हर साल ये त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाता है।

होलिका दहन


होली का ये उत्सव फागुन के अंतिम दिन होलिका दहन की शाम से शुरु होता है और अगला दिन रंगों में सराबोर होने के लिये होता है।

सभी रात में एक जगह इकट्ठा होकर लकड़ी, घास, और गोबर के ढेर को जलाकर होलिका दहन की रिवाज को संपन्न करते है। इसमें महिलाएं रीति से संबंधित गीत भी गाती है। इस दौरान सभी खुशनुमा माहौल में होते है और होली खेलने के लिये अगली सुबह का इंतजार करते है। 

रंगबिरंगी होली

बच्चे इस पर्व का बड़े उत्सुकता के साथ इंतजार करते है तथा आने से पहले ही रंग, पिचकारी, और गुब्बारे आदि की तैयारी में लग जाते है इस दिन सभी लोग सामाजिक विभेद को भुलाकर एक-दूसरे पर रंगों की बौछार करते है साथ ही स्वादिष्ट पकवानों और मिठाइयाँ बाँटकर खुशी का इजहार करते है। इस दिन पर हम लोग खासतौर से बने पापड़, हलवा, गुजिया, आदि खाते हैं।

निष्कर्ष


होली रंगो और हँसी -ख़ुशी का त्योहार है। यह एक ऐसा त्योहार है जिस दिन लोग अपने बीच के मतभेद को भूल जाते है।

Monday, February 10, 2020

Simple & Short Speech on Women’s Day in Hindi || Mahila Diwas Par Bhasha...







आप सभी को मेरी ओर से नमस्कार

महिला दिवस के अवसर पर मैं आप सभी महिलाओं का स्वागत करती हूँ। हम यहां अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं। मुझे बहुत प्रसन्नता है कि मुझे यहां स्पीच देने का अवसर मिला है। सबसे पहले मैं आप सभी का आभार व्यक्त करना चाहूंगी जो समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण के महत्व पर बहुत जोर देती है

सोशल, राजनीति और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में महिलाओं की उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है | अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस वह दिन है जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए समर्पित हैं। इस दुनिया में महिलाओं के बिना जीवन संभव नहीं है। महिलाओं में देखभाल, स्नेह, और अंतहीन प्यार करने की विशेष भावनाएं शामिल होती हैं।

एक महिला होने के नाते महिलाओं के लिए एक खास दिन होना अच्छा लगता है जहाँ उन्हें सराहा और सम्मानित किया जा सके लेकिन मुझे लगता है कि महिला का सम्मान सिर्फ महिला होने के कारण ही नहीं होना चाहिए बल्कि इसलिए भी क्योंकि उनकी खुद अपनी व्यक्तिगत पहचान है। वे समाज की भलाई में समान रूप से योगदान करती हैं। वह बच्चों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और अपने घर को भी कुशलतापूर्वक प्रबंधित करती है। प्रत्येक महिला को अपना महत्व समझना चाहिए और उनमें अपनी प्रगति के लिए प्रयास करने का साहस होना चाहिए|

आज की महिला अब एक आश्रित नारी नहीं है। वह स्वतंत्र और आत्मनिर्भर है और हर चीज करने में सक्षम है। चलिए उनके अस्तित्व के महत्व को पहचानें और भविष्य की उपलब्धियों के लिए उन्हें प्रेरित करें।



धन्यवाद।

Monday, February 3, 2020

वीर सावरकर पर निबंध || Short Essay on Veer Savarkar || Veer Savarkar Essay



वीर सावरकर पर निबंध
प्रारंभिक जीवन

वीर सावरकर का मूल नाम विनायक दामोदर सावरकर था। उनका जन्म 28 मई, 1883 को नासिक के पास भगूर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदरपंत सावरकर था और माता का नाम राधाबाई था। वीर सावरकर की प्रारंभिक शिक्षा शिवाजी विद्यालय, नासिक में हुई थी।
शिक्षा

अपने उच्च विद्यालय के दिनों के दौरान, वीर सावरकर शिवजी उत्सव और गणेश उत्सव को आयोजित करते थे, जोकि बालगंगधर तिलक द्वारा शुरू किया गया था, जिन्हें सावरकर अपने गुरु मानते थे, और इन अवसरों पर वे राष्ट्रवादी विषयों पर नाटक का आयोजन भी करते थे।

मार्च 1901 में, उन्होंने यमुनाबाई से शादी की। विवाह के बाद 1902 में, वीर सावरकर ने पुणे में फर्गुसन कॉलेज में दाखिला लिया।
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

पुणे में, सावरकर ने “अभिनव भारत सोसायटी” की स्थापना कीय़। वह स्वदेशी आंदोलन में भी शामिल थे और बाद में तिलक स्वराज्य पार्टी में शामिल हुए। जून 1906 में, वीर सावरकर, बैरीस्टर बनने के लिए लंदन गए थे। हालांकि, एक बार लंदन में, उन्होंने भारतीय छात्रों को भारत में हो रहे ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट किया। उन्होंने नि: शुल्क भारत सोसाइटी की स्थापना की।

इस सोसाइटी ने कुछ महत्वपूर्ण तिथियों को भारतीय कैलेंडर में शामिल किया, जिसमे त्योहारों, स्वतंत्रता आंदोलन के स्थलों को शामिल किया और यह भारतीय स्वतंत्रता के बारे में बात करने के लिए समर्पित थी।

1908 में, द ग्रेट इंडियन विद्रोह पर एक प्रामाणिक जानकारीपूर्ण अनुसंधान किया गया, जिसे ब्रिटिश ने 1857 का “सिपाही विद्रोह” कहा था। इस पुस्तक को “द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस 1857” कहा गया था।

1920 में, विठ्ठल भाई पटेल, महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक समेत अनेक प्रमुख स्वतंत्रता संग्रामियों ने सावरकर की रिहाई की मांग की। रत्नागिरि जेल में सावरकर ने पुस्तक ‘हिंदुत्व’ को लिखा था। अपनी रिहाई के बाद, वीर सावरकर ने 23 जनवरी 1924 को रत्नागिरी हिंदू सभा की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य भारत की प्राचीन संस्कृति को संरक्षित करना और सामाजिक कल्याण के लिए काम करना था।

बाद में सावरकर तिलक की स्वराज पार्टी में शामिल हो गए और एक अलग राजनीतिक दल के रूप में हिंदू महासभा की स्थापना की। वह महासभा के अध्यक्ष चुने गए और हिंदू राष्ट्रवाद के निर्माण के लिए कामयाब रहे और बाद में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गए।

हिंदू महासभा के एक स्वयंसेवक नाथुराम गोडसे ने 1948 में गांधी को हत्या कर दी थी।

अपनी फांसी तक अपने कार्यों को बरकरार रखा था। महात्मा गांधी हत्या के मामले में वीर सावरकर को भारत सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। लेकिन सबूत की कमी के कारण उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्दोष बताया।
मृत्यु

26 फरवरी, 1966 को विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर) की मृत्यु 83 वर्ष की आयु में हुई।

1966 में अपनी मृत्यु तक वे सामाजिक कार्य करते रहे. उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने उन्हें काफी सम्मानित किया और जब वे जीवीत थे तब उन्हें बहोत से पुरस्कार भी दिए गये थे. उनकी अंतिम यात्रा पर 2000 आरएसएस के सदस्यों ने उन्हें अंतिम विदाई दी थी और उनके सम्मान में “गार्ड ऑफ़ हॉनर” भी किया था.