Wednesday, January 29, 2020
महाशिवरात्रि पर निबंध || Best Essay on 'Mahashivratri' in Hindi || Short...
महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है।
महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन शिवभक्त एवं शिव में श्रद्धा रखने वाले लोग व्रत-उपवास रखते हैं और विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना करते हैं। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग ( जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है ) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।
कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी कहा जाता हैं।
अनुष्ठान
इस अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक अनेकों प्रकार से किया जाता है। जलाभिषेक : जल से और दुग्धाभिषेक : दूध से। भक्त सूर्योदय के समय पवित्र स्थानों पर स्नान करते हैं जैसे गंगा, या (खजुराहो के शिव सागर में) या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत में। पवित्र स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहने जाते हैं, भक्त शिवलिंग स्नान करने के लिए मंदिर में पानी का बर्तन ले जाते हैं महिलाओं और पुरुषों दोनों सूर्य, विष्णु और शिव की प्रार्थना करते हैं मंदिरों में घंटी और "शंकर जी की जय" ध्वनि गूंजती है। भक्त शिवलिंग की तीन या सात बार परिक्रमा करते हैं और फिर शिवलिंग पर पानी या दूध भी डालते हैं।
इस दिन भक्तगणों द्वारा शिवलिंग पर चंदन लगाकर भगवान शिव को फूल, बेल के पत्ते अर्पित किये जाते हैं। धूप और दीप से भगवान शिव का पूजन किया जाता है।
महाशिवरात्रि के दिन भक्तगण व्रत रहकर भगवान शिव का ध्यान करते हैं तथा जल, दूध एवं फूल इत्यादि चढ़ाते हैं।
भारत में शिवरात्रि
मध्य भारत
महाकालेश्वर मंदिर, (उज्जैन) सबसे सम्माननीय भगवान शिव का मंदिर है जहाँ हर वर्ष शिव भक्तों की एक बड़ी मण्डली महा शिवरात्रि के दिन पूजा-अर्चना के लिए आती है।
कश्मीर
कश्मीरी ब्राह्मणों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। यह शिव और पार्वती के विवाह के रूप में हर घर में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के उत्सव के 3-4 दिन पहले यह शुरू हो जाता है और उसके दो दिन बाद तक जारी रहता है।
दक्षिण भारत
महाशिवरात्रि आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के सभी मंदिरों में व्यापक रूप से मनाई जाती है।
नेपाल में शिवरात्रि
नेपाल पशुपति नाथ में महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि को नेपाल में व विशेष रूप से पशुपति नाथ मंदिर में व्यापक रूप से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर काठमांडू के पशुपतिनाथ मन्दिर पर भक्तजनों की भीड़ लगती है। इस अवसर पर भारत समेत विश्व के विभिन्न स्थानों से जोगी, एवम् भक्तजन इस मन्दिर में आते हैं।
शिवरात्रि को महिलाओं के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। विवाहित महिलाएँ अपने पति के सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं व अविवाहित महिलाएं भगवान शिव, जिन्हें आदर्श पति के रूप में माना जाता है जैसे पति के लिए प्रार्थना करती हैं।
Tuesday, January 28, 2020
छत्रपति शिवाजी पर निबंध || Simple & Short Essay on Chhatrapati Shivaji i...
छत्रपति शिवाजी मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे । वे मानवता तथा मानव मूल्यों को पूर्ण प्राथमिकता देते थे । वे सभी धर्मों का समान भाव से आदर करते थे । उस समय में भारत मुगलों के अधीन था । मुगल शासकों द्वारा हिंदुओं पर किए गए अत्याचार व भेदभाव को देखकर वे क्षुब्ध थे । वे एक सच्चे देशभक्त थे ।
जन्म-
'शिवाजी' का जन्म 19 February 1630 को शिवनेर के पहाड़ी किले में हुआ था। यह किला पूना के उत्तर में था। इनके पिता जी का नाम शाहजी भौंसला था। वे बीजापुर रियासत में एक ऊँचे सैनिक पद पर नियुक्त थे। इनकी माता का नाम जीजाबाई था।
बाल्य काल-
बाल्य काल-
शिवाजी का पालन-पोषण जीजाबाई ने किया था। शिवाजी पर उनकी माता की शिक्षाओं का बहुत प्रभाव पड़ा।
शिवाजी ने बचपन से ही तीर-तलवार चलाना, भाले बरछे चलाना, घुड़सवारी करना और नकली युद्ध करना शुरू कर दिया था। उनके दादा कोंडदेव ने इस युद्ध कौशल और शासन प्रबंध में निपुण कर दिया था। 19 वर्ष की छोटी सी आयु में शिवाजी ने बीजापुर के आस पास के कई किले जीत लिए थे।
तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब उनके बढ़ते प्रभाव से भयभीत हो उठा । उसने शिवाजी को बंदी बनाने के लिए अपने सेनाध्यक्ष और अनेक सेनानायकों को भेजा परंतु उन सभी को मुँह की खानी पड़ी । शिवाजी की गुरिल्ला तकनीक के सम्मुख वे टिक नहीं सके अंतत: औरंगजेब ने उन्हें धोखे से बंदी बना लिया परंतु वह अधिक दिन तक उन्हें कैद में नहीं रख सका । अपनी चतुराई से वे उसकी कैद से निकल सकने में समर्थ रहे ।
निधन
औरंगजेब की कैद से निकलने के उपरांत उन्होंने मुगल शासक से पूर्ण युद्ध के लिए अपनी सेना को तैयार किया । वे सभी किले जिन पर औरंगजेब ने अपना आधिपत्य जमा लिया था वे सभी पुन: उन्होंने जीत लिए । सन् 1674 ई॰ में वे रायगढ़ के राजा बने और उनका विधिवत् राज्याभिषेक हुआ । इस प्रकार शिवाजी ने लंबे अंतराल के बाद ‘हिंदू-पद-पादशाही’ की स्थापना की । सन् 1680 ई. में 53 वर्ष की आयु में रायगढ़ में ही उनका निधन हो गया।
छत्रपति शिवाजी एक सहासी एवं वीर योद्धा थे । यह उनकी साहस वीरता और कुशाग्रता के गुण ही थे जिससे उन्होंने विशाल मुगल सेना से भी युद्ध करने का साहस किया । वे व्यक्तिगत रूप से सत्य और सभी मानव मूल्यों पर पूर्ण आस्था रखते थे।
शिवाजी ने बचपन से ही तीर-तलवार चलाना, भाले बरछे चलाना, घुड़सवारी करना और नकली युद्ध करना शुरू कर दिया था। उनके दादा कोंडदेव ने इस युद्ध कौशल और शासन प्रबंध में निपुण कर दिया था। 19 वर्ष की छोटी सी आयु में शिवाजी ने बीजापुर के आस पास के कई किले जीत लिए थे।
तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब उनके बढ़ते प्रभाव से भयभीत हो उठा । उसने शिवाजी को बंदी बनाने के लिए अपने सेनाध्यक्ष और अनेक सेनानायकों को भेजा परंतु उन सभी को मुँह की खानी पड़ी । शिवाजी की गुरिल्ला तकनीक के सम्मुख वे टिक नहीं सके अंतत: औरंगजेब ने उन्हें धोखे से बंदी बना लिया परंतु वह अधिक दिन तक उन्हें कैद में नहीं रख सका । अपनी चतुराई से वे उसकी कैद से निकल सकने में समर्थ रहे ।
निधन
औरंगजेब की कैद से निकलने के उपरांत उन्होंने मुगल शासक से पूर्ण युद्ध के लिए अपनी सेना को तैयार किया । वे सभी किले जिन पर औरंगजेब ने अपना आधिपत्य जमा लिया था वे सभी पुन: उन्होंने जीत लिए । सन् 1674 ई॰ में वे रायगढ़ के राजा बने और उनका विधिवत् राज्याभिषेक हुआ । इस प्रकार शिवाजी ने लंबे अंतराल के बाद ‘हिंदू-पद-पादशाही’ की स्थापना की । सन् 1680 ई. में 53 वर्ष की आयु में रायगढ़ में ही उनका निधन हो गया।
छत्रपति शिवाजी एक सहासी एवं वीर योद्धा थे । यह उनकी साहस वीरता और कुशाग्रता के गुण ही थे जिससे उन्होंने विशाल मुगल सेना से भी युद्ध करने का साहस किया । वे व्यक्तिगत रूप से सत्य और सभी मानव मूल्यों पर पूर्ण आस्था रखते थे।
Wednesday, January 22, 2020
बसंत पंचमी पर निबंध || Hindi Essay on Basant or Vasant Panchami (Festival)
बसंत पंचमी पर निबंध
हमारे देश में बसंत पंचमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। मां सरस्वती को विद्या की देवी भी कहा जाता है। यह पूजा माघ महीने के शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है। यह पर्व जनवरी या फरवरी माह में आता है।
सरस्वती पूजा के दिन विद्यार्थी और बहुत सारे लोग मां सरस्वती की वंदना करते हैं। बहुत सारे स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में मां सरस्वती की प्रतिमा बैठाई जाती है और पूजा की जाती है। छात्र और छात्राएं सरस्वती पूजा के दिन सुबह-सुबह नहा-धोकर मां सरस्वती की पूजा करते हैं और फिर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
बसंत पंचमी पर हमारी फसलें-गेहूँ, जौ, चना आदि तैयार हो जाती हैं इसलिए इसकी खुशी में हम बसंत पंचमी का त्योहार मनाते हैं। संध्या के समय बसंत का मेला लगता है जिसमें लोग परस्पर एक-दूसरे के गले से लगकर आपस में स्नेह, मेल-जोल तथा आनंद का प्रदर्शन करते हैं। कहीं-कहीं पर बसंती रंग की पतंगें उड़ाने का कार्यक्रम बड़ा ही रोचक होता है। इस पर्व पर लोग बसंती कपड़े पहनते हैं और बसंती रंग का भोजन करते हैं तथा मिठाइयाँ बाँटते हैं। बसंत पंचमी, ज्ञान, संगीत और कला की देवी, 'सरस्वती' की पूजा का त्यौहार है। इस त्यौहार में बच्चों को हिंदू रीति के अनुसार उनका पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है। हर कोई बहुत मज़े और उत्साह के साथ इस त्यौहार का आनंद लेता है।
बसंत पंचमी का दिन हिन्दू धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व रखता है बसंत पंचमी के दिन से ऋतू बदल जाती है और इसी दिन से बसंत का मौसम शुरू हो जाता है बसंत पंचमी सर्दियों के मौसम के अंत का प्रतीक है।
Wednesday, January 15, 2020
सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध || Short Essay on Subhash Chandra Bose in hind...
प्रस्तावना:
सुभाष चन्द्र बोस एक महान स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त थे। नेताजी भारत के एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने बहुत संघर्ष किया और एक बड़ी भारतीय आबादी को स्वतंत्रता संघर्ष के लिये प्रेरित किया
जीवन परिचय:
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कटक में 1897 में 23 जनवरी को अमीर हिंदू कायस्थ परिवार में हुआ था। वह जानकीनाथ बोस (पिता) और प्रभाती देवी (मां) की संतान थे। वह अपने माता-पिता के चौदह बच्चों में से 9 वें भाई थे।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा कटक से पूरी की लेकिन मैट्रिक की डिग्री कलकत्ता और बी.ए. कलकत्ता विश्वविद्यालय से डिग्री (1918 में) प्राप्त की। उच्च अध्ययन करने के लिए वे 1919 में इंग्लैंड गए। वह चित्तरंजन दास (एक बंगाली राजनीतिक नेता) से अत्यधिक प्रभावित थे और जल्द ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
उनके कार्य:
उन्होंने स्वराज नामक अखबार के माध्यम से लोगों के सामने अपने विचार व्यक्त करना शुरू किया। उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध किया और भारतीय राजनीति में रुचि ली। उनकी सक्रिय भागीदारी के कारण, उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस सचिव के रूप में चुना गया था।
वो मानते थे कि अंग्रेजों से आजादी पाने के लिये अहिंसा आंदोलन काफी नहीं है इसलिये देश की आजादी के लिये हिंसक आंदोलन को चुना। नेताजी भारत से दूर जर्मनी और उसके बाद जापान गये जहाँ उन्होंने अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना बनायी, ‘आजाद हिन्द फौज’।5 जुलाई 1943 को 'आजाद हिन्द फौज' का विधिवत गठन हुआ। ब्रिटिश शासन से बहादुरी से लड़ने के लिये अपनी आजाद हिन्द फौज में उन देशों के भारतीय रहवासियों और भारतीय युद्ध बंदियों को उन्होंने शामिल किया।
12 सितंबर 1944 को रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतीन्द्र दास के स्मृति दिवस पर नेताजी ने अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा- 'अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांगती है। आप मुझे खून दो, मैं आपको आजादी दूंगा।' यही देश के नौजवानों में प्राण फूंकने वाला वाक्य था, जो भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
मृत्यु
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 1945 में एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु की बुरी खबर ने उनकी भारतीय राष्ट्रीय सेना की ब्रिटिश शासन से लड़ने की सभी आशाओं को समाप्त कर दिया था।
अपनी मृत्यु के बाद भी, वह अभी भी एक जीवंत प्रेरणा के रूप में भारतीय लोगों के दिल में अपने जीवंत राष्ट्रवाद के साथ जीवित है। विद्वानों के मत के अनुसार, जले हुए जापानी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। नेताजी के महान कार्यों और योगदानों को भारतीय इतिहास में एक अविस्मरणीय घटना के रूप में चिह्नित किया गया है।
Thursday, January 9, 2020
भारत के गणतंत्र दिवस पर जोरदार भाषण हिंदी में || Speech on Republic Day ...
गणतंत्र दिवस पर भाषण हिंदी में || Republic Day 2020 Speech in Hindi
आदरणीय प्रिंसिपल सर, सभी शिक्षकगण, सहपाठियों और अभीभावकों को मेरा नमस्कार।
मैं आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ
आज हम सभी “गणतंत्र दिवस” मनाने के लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं। भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागू हुआ, इसलिये हम इस दिन को हर साल गणतंत्र दिवस के रुप में मनाते हैं। इस वर्ष 2020 में, हम भारत का 71वां गणतंत्र दिवस मना रहें हैं। गणतंत्र का अर्थ है देश में सभी देशवासियों के लिए समान व्यवस्था और कानून स्थापित करना। हमारे देश में सभी धर्मों को, संप्रदायों को समान अधिकार और स्थान दिया गया है। हम सभी के लिए 26 जनवरी एक गौरव पूर्ण दिन है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ जनता अपना नेता प्रधानमंत्री के रुप में चुनती है। भारत में “पूर्ण स्वराज” के लिये हमारे महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत संघर्ष किया। उन्होंने अपने प्राणों की आहूति दी जिससे उनके आने वाली पीढ़ी को कोई संघर्ष न करना पड़े और वो देश को आगे लेकर जाएँ।
भारत के एक नागरिक के रुप में हमें अपने देश को विश्व का एक बेहतरीन देश बनाने के लिये और आगे बढ़ाने के लिये सभी मुमकिन प्रयास करना चाहिये।
धन्यवाद, जय हिन्द
आज हम सभी “गणतंत्र दिवस” मनाने के लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं। भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागू हुआ, इसलिये हम इस दिन को हर साल गणतंत्र दिवस के रुप में मनाते हैं। इस वर्ष 2020 में, हम भारत का 71वां गणतंत्र दिवस मना रहें हैं। गणतंत्र का अर्थ है देश में सभी देशवासियों के लिए समान व्यवस्था और कानून स्थापित करना। हमारे देश में सभी धर्मों को, संप्रदायों को समान अधिकार और स्थान दिया गया है। हम सभी के लिए 26 जनवरी एक गौरव पूर्ण दिन है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ जनता अपना नेता प्रधानमंत्री के रुप में चुनती है। भारत में “पूर्ण स्वराज” के लिये हमारे महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत संघर्ष किया। उन्होंने अपने प्राणों की आहूति दी जिससे उनके आने वाली पीढ़ी को कोई संघर्ष न करना पड़े और वो देश को आगे लेकर जाएँ।
भारत के एक नागरिक के रुप में हमें अपने देश को विश्व का एक बेहतरीन देश बनाने के लिये और आगे बढ़ाने के लिये सभी मुमकिन प्रयास करना चाहिये।
धन्यवाद, जय हिन्द
Tuesday, January 7, 2020
राष्ट्रीय युवा दिवस || National Youth Day in India || Short Essay on Nat...
राष्ट्रीय युवा दिवस (स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस)
हर वर्ष 12 जनवरी को भारत में पूरे उत्साह और खुशी के साथ राष्ट्रीय युवा दिवस या स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस मनाया जाता है। इसे आधुनिक भारत के निर्माता स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को याद करने के लिये मनाया जाता है। 1984 में भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषित कर दिया और 1985 से यह दिन भारत वर्ष में हर साल मनाया जाने लगा।
इसे मनाने का मुख्य लक्ष्य भारत के युवाओं के बीच स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और विचारों के महत्व को फैलाना है।
युवा पीढ़ी के प्रयासों के आधार पर ही हमारे देश का आर्थिक विकास संभव है। इसलिए, किसी भी देश के लिए युवा पीढ़ी के विकास में युवा पीढ़ी को प्रेरित करना, प्रोत्साहित करना यह बेहद महत्वपूर्ण कार्य है। यही कारण है कि राष्ट्रीय युवा दिवस हर साल भारत और अन्य देशों में मनाया जाता है।
भारतीय युवाओं को प्रेरित करने के लिये विद्यार्थियों द्वारा स्वामी विवेकानंद के विचारों से संबंधित व्याख्यान और लेखन भी किया जाता है। हम सभी लोग भी इस दिन स्वामी विवेकानंद के जीवन से कुछ नया सीखते हैं, जो हम सभी भारत के युवाओं को और उनके व्यक्तिगत विकास के लक्ष्यों को प्रोत्साहित करने में हम सबकी मदद करता हैं।
राष्ट्रीय युवा दिवस उत्सव
पौष कृष्णा सप्तमी तिथि में वर्ष 1863 में 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था। स्वामी विवेकानंद का जन्म दिवस हर वर्ष रामकृष्ण मिशन के केन्द्रों पर, रामकृष्ण मठ और उनकी कई शाखा केन्द्रों पर भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाया जाता है।
उत्सव और इससे संबंधित गतिविधियां Celebration of National Youth Day
आज पूरे भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस स्कूलों और कॉलेजों में मनाया जाता है, जिसमें हर साल 12 जनवरी को कुछ कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते है। इन कार्यक्रमों में छात्र भाषण, पाठ, संगीत, युवा सम्मेलन, सेमिनार, योगासन, प्रस्तुतियां, निबंध लेखन, निमंत्रण और खेल की प्रतियोगिताओं को शामिल करते हैं।
स्वामी विवेकानंद के व्याख्यान और लेखन भारतीयों को प्रेरणा देते है और उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी के व्यापक दृष्टिकोण, प्रेरणा के स्रोत हैं और युवाओं से जुड़े कई युवा संगठनों, अध्ययन मंडलियों और सेवा परियोजनाओं आदि को प्रेरित करते हैं।
1. इस दिन लोग संगठनों द्वारा खोले गए रक्तदान शिविरों में रक्त दान करते हैं।
2. स्कूल और कॉलेज में स्वामी विवेकानंद के जीवन पर भाषण प्रतियोगिता और समूह चर्चा आयोजित किये जाते हैं।
3. युवा पीढ़ी के प्रेरित करने के लिए, टीवी पर कार्यक्रम, समाचार, नेता के साक्षात्कार, भाषण, बहस इत्यादि को शिक्षित करने के लिए आप राष्ट्रीय युवा दिवस पर देख सकते हैं।
4. राष्ट्रीय युवाओं को इस दिन हमारे भारतीय नेता जिम्मेदारी, एकता और विकास के बारे में सिखाते हैं और हमें समर्पण और कड़ी मेहनत के साथ अपने लक्ष्यों की दिशा में कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करते हैं।
5. युवा दिवस के दिन लोग फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर स्वामी विवेकानंद की उद्धरण, वॉलपेपर, फोटो का साझा करते हैं। हम सभी लोग भी इस दिन स्वामी विवेकानंद के जीवन से कुछ नया सीखते हैं, जो हम सभी भारत के युवाओं को और उनके व्यक्तिगत विकास के लक्ष्यों को प्रोत्साहित करने में हम सबकी मदद करता हैं।
Monday, January 6, 2020
लोहड़ी पर निबंध || Simple & Short Essay on “Lohri Festival” in Hindi || ...
लोहड़ी पर निबंध
लोहड़ी भारत का प्रसिद्ध त्यौहार है। लोहड़ी शब्द “तिल+रोड़ी” अर्थात तिलौडी से बना है। भारत में यह त्यौहार हर वर्ष 13 जनवरी को बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है , किन्तु पंजाब में लोहड़ी को बड़े ही जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है । पंजाब में लोहड़ी बहुत धूम धाम से मनाई जाती है । लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बहुत धूम-धाम के साथ मनाया जाता है ।
कैसे मनाते हैं लोहड़ी
लोहड़ी पंजाबियों के लिए खास महत्व रखती है।छोटे बच्चे लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही लोहरी के गीत गाते हैं और साथ ही लोहड़ी के लिए लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लगते हैं । लोहड़ी वाले दिन शाम को आग जलाई जाती है ।
अग्नि के चारों ओर लोग चक्कर लगाते हैं और नाचते-गाते हैं। साथ ही आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति भी देते हैं। लोग आग के चारों ओर बैठते हैं और आग सेंकते हैं। व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाते हैं। जिस घर में नई शादी या बच्चा हुआ हो और जिसकी शादी के बाद पहली लोहरी या बच्चे की पहली लोहड़ी होती है उन्हें विशेष तौर पर बधाई देते हैं।
पहले कहते थे तिलोडी
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहते थे। तिलोडी शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मिलकर बना है। जो अब बदलकर लोहरी के रुप में प्रसिद्ध हो गया।
लोहरी का ऐतिहासिक संदर्भ
एक समय में दो अनाथ लड़कियां थीं। जिनका नाम सुंदरी एवं मुंदरी था। उनकी विधिवत शादी न करके उनका चाचा उन्हें एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में एक दुल्ला भट्टी नाम का डाकू हुआ है । उसने सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कर दीं।
दुल्ला भट्टी ने इस मुसीबत की घड़ी में लड़कियों की मदद की। दुल्ला भट्टी ने लड़के वालों को मनाया और एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवा दिया। उन दोनों का कन्यादान भी दुल्ले ने खुद ही किया। ये भी कहा जाता है कि शगुन के रूप में दुल्ले ने उनको शक्कर दी थी। दुल्ले ने उन लड़कियों को जब विदा किया तब उनकी झोली में एक सेर शक्कर ड़ाली। दुल्ला भट्टी ने ड़ाकू हो कर भी निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई। साथ ही ये भी कहते हैं कि यह पर्व संत कबीर की पत्नी लोई की याद में मनाते हैं। इसीलिए यह पर्व को लोई भी कहते हैं। इस प्रकार पूरे उत्तर भारत में यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।
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