Monday, January 6, 2020

लोहड़ी पर निबंध || Simple & Short Essay on “Lohri Festival” in Hindi || ...






लोहड़ी पर निबंध 

लोहड़ी भारत का प्रसिद्ध त्यौहार है। लोहड़ी शब्द “तिल+रोड़ी” अर्थात तिलौडी से बना है। भारत में यह त्यौहार हर वर्ष 13 जनवरी को बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है , किन्तु पंजाब में लोहड़ी को बड़े ही जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है । पंजाब में लोहड़ी बहुत धूम धाम से मनाई जाती है । लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बहुत धूम-धाम के साथ मनाया जाता है ।

कैसे मनाते हैं लोहड़ी

लोहड़ी पंजाबियों के लिए खास महत्व रखती है।छोटे बच्चे लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही लोहरी के गीत गाते हैं और साथ ही लोहड़ी के लिए लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लगते हैं । लोहड़ी वाले दिन शाम को आग जलाई जाती है ।

अग्नि के चारों ओर लोग चक्कर लगाते हैं और नाचते-गाते हैं। साथ ही आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति भी देते हैं। लोग आग के चारों ओर बैठते हैं और आग सेंकते हैं। व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाते हैं। जिस घर में नई शादी या बच्चा हुआ हो और जिसकी शादी के बाद पहली लोहरी या बच्चे की पहली लोहड़ी होती है उन्हें विशेष तौर पर बधाई देते हैं।

पहले कहते थे तिलोडी

लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहते थे। तिलोडी शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मिलकर बना है। जो अब बदलकर लोहरी के रुप में प्रसिद्ध हो गया।

लोहरी का ऐतिहासिक संदर्भ

एक समय में दो अनाथ लड़कियां थीं। जिनका नाम सुंदरी एवं मुंदरी था। उनकी विधिवत शादी न करके उनका चाचा उन्हें एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में एक दुल्ला भट्टी नाम का डाकू हुआ है । उसने सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कर दीं।

दुल्ला भट्टी ने इस मुसीबत की घड़ी में लड़कियों की मदद की। दुल्ला भट्टी ने लड़के वालों को मनाया और एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवा दिया। उन दोनों का कन्यादान भी दुल्ले ने खुद ही किया। ये भी कहा जाता है कि शगुन के रूप में दुल्ले ने उनको शक्कर दी थी। दुल्ले ने उन लड़कियों को जब विदा किया तब उनकी झोली में एक सेर शक्कर ड़ाली। दुल्ला भट्टी ने ड़ाकू हो कर भी निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई। साथ ही ये भी कहते हैं कि यह पर्व संत कबीर की पत्नी लोई की याद में मनाते हैं। इसीलिए यह पर्व को लोई भी कहते हैं। इस प्रकार पूरे उत्तर भारत में यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।

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