संजय गांधी
संजय गांधी (१४ दिसम्बर १९४६ - २३ जून १९८०) भारत के एक राजनेता थे। वे भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के छोटे पुत्र थे। मेनका गांधी उनकी पत्नी हैं और वरुण गांधी उनके पुत्र। भारत में आपातकाल के समय उनकी भूमिका बहुत विवादास्पद रही। अल्पायु में ही एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी।
प्रारंभिक जीवन
संजय गाँधी का जन्म 14 दिसम्बर 1946 को दिल्ली में हुआ था | पहले वेल्हम बॉयज स्कूल और फिर ख्यातिप्राप्त देहरादून के दून स्कूल में उनका दाखिला कराया गया | परन्तु इंदिरा और फ़िरोज़ गाँधी के तमाम प्रयासों के बावजूद वह स्कूल की पढाई भी पूरी नहीं कर पाए |
निजी जीवन
संजय गांधी का विवाह अपने से 10 साल छोटी मेनका आनंद से अक्टूबर 1974 को नयी दिल्ली में हुआ था। उनका एक बेटा वरुण गांधी भी है, जो संजय गांधी की मृत्यु के कुछ समय पहले ही पैदा हुआ था। बाद में उन्होंने खुद की पार्टी संजय विचार मंच शुरू की। मेनका गांधी ने इसके बाद बहुत से अ-कांग्रेसीय दलों को सहायता की और कई सालो तक सरकार में बनी रही। वर्तमान में वह और उनका बेटा वरुण गांधी, बीजेपी के सदस्य है।
विवादित जीवन
संजय गाँधी का सम्पूर्ण जीवन विवादों से भरा रहा | उनका व्यक्तिगत जीवन से लेकर सार्वजनिक जीवन तक विवादों से अछूता नहीं रहा था | बिना किसी पद और ओहदे के सरकारी कामों में दखल देना आदि से वे हमेशा विवादित व्यक्तित्व बने रहे | उनके साथ जुड़े कुछ विवाद निम्न हैं--
मारुती लिमिटेड विवाद:
1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कैबिनेट ने “लोगो की कार” बनाने का निर्णय कंपनी को दिया, जिसे भारत के मध्यम-वर्गीय लोग भी आसानी से खरदी सके। जून 1971 में मारुती मोटर्स लिमिटेड के नाम से जाने जानी वाली कंपनी की स्थापना कंपनी एक्ट के तहत की गयी और संजय गांधी ही उसके मैनेजिंग डायरेक्टर बने।
जबकि संजय गांधी को इससे पहले काम करने का कोई अनुभव भी नही था, वे बहुत से प्रस्ताव बनाते और कारपोरेशन को सौपते थे, उन्हें कार को बनाने का कॉन्ट्रैक्ट भी मिल चूका था और साथ ही ज्यादा मात्रा में कार के उत्पादन करने के लाइसेंस भी उन्हें जारी कर दिया गया था। लेकिन इस निर्णय का ज्यादातर लोगो ने विरोध भी किया लेकिन 1971 के बांग्लादेश लिबरेशन वॉर और पाकिस्तान पर जीत हासिल करने के बाद, यह निर्णय काफी हद तक सही साबित नही हुआ।
नसबंदी कार्यक्रम पर विवाद
आपातकाल के दौरान देश में लागू किए गए कठोर कानूनों में जो सबसे विवादित कानून रहा, वह था परिवार नियोजन कार्यक्रम को सख्ती से लागू करने के लिए चलाया गया नसबंदी का अभियान | देश की बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए संजय गाँधी ने इसे कड़ाई से लागू करने का आदेश जारी किया था |
माना जाता है कि उस दौरान लगभग 4 लाख लोगों की जबरन नसबंदी की गई थी | सरकार की इस जोर-जबरदस्ती से आम जनता में भारी असंतोष पैदा हुआ और देशभर में इस कार्यक्रम का विरोध शुरू हो गया |
‘किस्सा कुर्सी का’ विवाद
वर्ष 1975 में अमृत नाहटा द्वारा बनाई गई और निर्देशित फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ इंदिरा और संजय गाँधी पर लक्षित था | इस फिल्म को अप्रैल 1975 में सेंसर बोर्ड के पास प्रमाणन के लिए भेजा गया था |
वर्ष 1977 में जनता पार्टी द्वारा आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों की जांच के लिए गठित शाह आयोग ने इस फिल्म से जुड़े मुद्दे की भी जाँच की थी और फिल्म के मास्टर प्रिंट को जलाने में संजय गाँधी और उनके ख़ास तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ल को दोषी ठहराया था |
जामा मस्जिद का सुन्दरीकरण और झोपड़ियो का विनाश:
। कहा जाता है की जब संजय गांधी तुर्कमान गेट देखने के लिए दिल्ली गये थे तो उन्हें काफी गुस्सा आया था क्योकि झोपड़ियो की वजह से उन्हें पुरानी जामा मस्जिद नही दिखाई दे रही थी।
13 अप्रैल 1976 को उन्ही के आदेश पर दिल्ली विकास विभाग ने उन झोपड़ियो पर बुलडोज़र चला दिए और जो लोग इसका विरोध करने लगे उनपर पुलिस ने लाठीचार्ज भी कर दिया और गोलियाँ भी चलानी पड़ी था। इस भगदड़ में तक़रीबन 150 लोग मारे गये थे। इस घटना के बाद तक़रीबन 70,000 लोग बेघर हो गये थे। बेघर लोगो को बाद में यमुना नदी के किनारे नए अविकसित घरो में रहना पड़ा था।
इंदिरा गांधी ने विकास के लिए 20-पॉइंट आर्थिक कार्यक्रम की घोषणा की थी। संजय ने भी अपने खुद के पाँच पॉइंट के कार्यक्रम की घोषणा की थी :
• पारिवारिक योजना
• शिक्षा
• पेड़ लगाओ, पेड़ बचाओ
• दहेज़ प्रथा को ख़त्म करना
• जातिभेद को जड़ से समाप्त करना
लेकिन आनी-बानी के समय संजय के इस कार्यक्रम को ही इंदिरा गांधी के 20-पॉइंट के कार्यक्रम में शामिल कर के, कुल 25-पॉइंट का विकास प्लान बनाया गया था।
मृत्यु
उनके प्लेन के हवाँ में क्रेश होने की वजह से 23 जून 1980 को नयी दिल्ली के सफ़दरजंग एअरपोर्ट के पास उनकी मृत्यु हो गयी।
असल में देखा जाए तो विवादों से घिरे हुए होने के बावजूद संजय गांधी के लोकप्रिय राजनेता थे। पहले से ही उनमे भारतीय राजनीती और देश के लिए कुछ अलग करने की चाहत थी और परदे के पीछे से भी उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए की वाद-विवादों से जैसा उनका घरेलु रिश्ता सा बन गया था। लेकिन विवादों से घिरे रहने के बावजूद जनमानस में उनकी लोकप्रियता कम नही हुई। उन्होंने ने जो योजनाए दी थी उन्हें अगर सही तरीके से लागू किया जाता तो निश्चित रूप से देश का कायाकल्प हो जाता।
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