Sunday, April 26, 2020

मज़दूर दिवस पर निबंध || Simple & Short Essay on Labour Day in Hindi || L...







मज़दूर दिवस पर निबंध- Essay on Labour Day in Hindi
प्रस्तावना

विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस “1 मई” के दिन मनाया जाता है। किसी भी देश की तरक्की उस देश के किसानों तथा कामगारों (मजदूर / कारीगर) पर निर्भर होती है। किसी समाज, देश, उद्योग, संस्था, व्यवसाय को खड़ा करने के लिये कामगारों (कर्मचारीयों) की विशेष भूमिका होती है।

मजदुरों के बिना किसी भी देश का विकास नहीं किया जा सकता है और न हीं कोई उद्योग कार्य कर सकता है। मजदुर दिवस को श्रमिक दिवस और मई डे के नाम से भी जाना जाता है। यह ज्यादातर 1 मई को मनाया जाता है।

अधिकांश देशों में यह सार्वजनिक अवकाश का दिन है। यह 1 मई को 80 से अधिक देशों में मनाया जाता है। कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका सितंबर के पहले सोमवार को इसे मनाते हैं। इस तिथि को मनाने के लिए कई देशों की अपनी अलग-अलग तिथि है। हालांकि उत्सव को मनाने का कारण एक समान रहता है और वह श्रम वर्ग की कड़ी मेहनत का जश्न मनाने के लिए है।

मजदूर दिवस की उत्पत्ति

इसकी शुरूआत अमेरिका के शिकागो की हेय मार्केट से हुई 1 मई, 1886 से हुई थी। वहाँ के मजदुरों ने कार्य करने के सीमा 10-12 घंटे तक हटाकर 8 घंटे करने के लिए हड़ताल की थी। उस दिन पुलिस द्वारा चलाई गई गोलियों से सात लोगों की मौत हुई। लेकिन अंत में मजदुरों की माँग मान ली गई थी।

भारत में मजदूर दिवस –

1923 में भारत में मजदुर दिवस पहली बार चैन्नई में मनाया गया था। यह उत्सव भारतीय श्रमिक किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान द्वारा मद्रास में आयोजित किया गया था। इस दिन कॉमरेड सिंगारवेलियर ने राज्य में विभिन्न स्थानों पर दो बैठकें आयोजित कीं। इनमें से एक का आयोजन ट्रालीकलान बीच पर किया गया था और दूसरी को मद्रास हाई कोर्ट के समीप समुद्र तट पर व्यवस्थित किया गया था। उन्होंने एक संकल्प पारित कर कहा कि सरकार को इस दिन राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा करनी चाहिए।

महाराष्ट्र राज्य में 1 मई को महाराष्ट्र दिवस के रूप में मनाया जाता है और गुजरात में इसे गुजरात दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका कारण यह है कि 1960 में इसी दिन महाराष्ट्र और गुजरात को राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ था।

भारत में मजदूर दिवस – उत्सव


बहुत संघर्ष के बाद श्रमिकों को उनके अधिकार दिए गए थे। जिन्होंने इस दिवस के लिए कड़ी मेहनत की उन्होंने इसके महत्व को और अधिक बढ़ा दिया। इस दिन का उनके लिए विशेष महत्व था। इस प्रकार अधिकांश देशों में श्रम दिवस समारोह ने शुरू में अपने संघ के उन नेताओं को सम्मान देने का काम किया जिन्होंने इस विशेष दिन का दर्जा हासिल किया और दूसरों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। प्रमुख नेताओं और श्रमिकों द्वारा एक साथ प्रसन्नता के साथ समय बिताने पर भाषण दिए जाते हैं।

ट्रेड यूनियन मजदूरों की टीम के लिए विशेष लंच और रात्रिभोज या संगठित पिकनिक और आउटिंग आयोजित करते हैं। कार्यकर्ताओं के अधिकारों का जश्न मनाने के लिए अभियान और परेड आयोजित की जाती हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं।

जहाँ कई संगठन और समूहों द्वारा इस दिन पर लंच और पिकनिक और ट्रेड यूनियनों द्वारा अभियान तथा परेड आयोजित किए जाते हैं वहीँ कई लोग इस दिन को बस आराम करने और फिर से जीवंत करने के अवसर के रूप में देखते हैं। वे अपने लंबित घरेलू कार्यों को पूरा करने में समय व्यतीत करते हैं या अपने दोस्तों और परिवार के साथ बाहर जाते हैं।

Tuesday, April 21, 2020

आदि शंकराचार्य पर निबंध || Simple & Short Essay on Adi Shankaracharya in...









आदि शंकराचार्य जी भारत मे एक महान दार्शनिक और धर्मप्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं। आदि शंकरचार्य का जन्म 788 ई. में केरल में कालपी अथवा 'काषल' नामक ग्राम में हुआ था। आदि शंकराचार्य जी के पिता जी का नाम शिवगुरु तथा माता जी का नाम सुभद्रा था।



इनके पिता जी ने इनकी माता जी के साथ सन्तान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की बहुत दिनों तक आराधना की थी जिसके बाद आदि शंकराचार्य जी का जन्म हुआ था इसीलिए इनके पिता जी ने इनका नाम शंकर रखा था। जब ये तीन ही वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया। जब ये पांच(5) वर्ष के थे तभी इनकी माता जी ने इनका यज्ञोपवीत संस्कार करा कर इनको गुरुकुल में वेदों के अध्ययन के लिए भेज दिया था।

ये बड़े ही मेधावी तथा प्रतिभाशाली थे। छह वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। इनके सन्यास धारण करने के सन्दर्भ में एक कथा प्रचलित है जिसमें बताया गया है कि जब इन्होंने अपनी माता जी से सन्यास धारण करने की अनुमति मांगी तो एक मात्र पुत्र होने के कारण इनकी माता ने आदि शंकराचार्य जी को सन्यास धारण करने से मना कर दिया।



परन्तु एक दिन जब ये नदी में नहा रहे थे तो एक मगरमच्छ ने इनके पैर को पकड़ लिया और इसी अवसर का लाभ उठा कर इन्होंने अपनी माता जी से कहा कि मुझे सन्यास धारण करने की अनुमति नही देंगी तो यह मगरमच्छ मुझे मार डालेगा।

आदि शंकराचार्य जी के प्राणों को संकट में देखकर इनकी माता जी ने इन्हें सन्यास धारण करने की अनुमति दे दी। जैसे ही इनकी माता जी ने इन्हें सन्यास धारण करने की अनुमति दी वैसे ही उस मगरमच्छ ने आदि शंकराचार्य जी के पैरों को भी छोड़ दिया।



आदि शंकर ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। उन्होने सनातन धर्म की विविध विचारधाराओं का एकीकरण किया। उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। वे चारों स्थान ये हैं- (१) ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, (२) श्रृंगेरी पीठ, (३) द्वारिका शारदा पीठ और (४) पुरी गोवर्धन पीठ। इन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था। ये शंकर के अवतार माने जाते हैं। इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य जी की जयंती, प्रत्येक वर्ष के वैशाख माह की शुक्ल पंचमी के दिन देश के सभी मठों में विशेष हवन पूजन तथा शोभा यात्रा निकाल कर मनाई जाती है।

32 वर्ष की अल्प आयु में सन् 820 ई. में केदारनाथ के समीप आदि गुरु शंकराचार्य स्वर्गवासी हुए थे।

Friday, April 17, 2020

अक्षय तृतीया पर्व पर निबंध || Akshaya Tritiya Essay in Hindi || Akshaya ...






अक्षय तृतीया 

हिन्दू धर्म के अनुसार अक्षय तृतीया त्यौहार का विशेष महत्व है , अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।

इस दिन नए कार्य शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है. और कुछ लोग इस दिन अक्षय तृतीया पर सोने खरीदने के लिए भी शुभ माना जाता है। जिस कारण से अक्षय तृतीया के दिन सोने की खरीदारी बढ़ जाती है, जो की समृद्धि का प्रतिक माना जाता है। अक्षय तृतीया की तिथि बहुत शुभ मानी जाती है, इस तिथि को बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, गृह प्रवेश, वस्त्र-आभूषण खरीदना, वाहन एवं घर आदि खरीदा जा सकता है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा किया जाता है, इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी को चावल चढ़ाना, तुलसी के पत्तो में भोजन के भोग लगाना और विधिवत पूजा पाठ करने का विधान है, फिर इस दिन दान देने की भी परंपरा है जिससे सुख समृधि की कामना किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है।

महत्व  

पौराणिक कथाओं और प्राचीन इतिहास के अनुसार, अक्षय तृतीया दिन कई महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाता है-
भगवान गणेश और वेद व्यास ने महाकाव्य महाभारत को इस दिन लिखा था। 

इस दिन को भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है |
कहते है- इस दिन, देवी अन्नपूर्णा का जन्म हुआ। 

इस दिन, भगवान कृष्ण ने अपने गरीब दोस्त सुदामा को धन और मौद्रिक लाभ प्रदान किया था । 

महाभारत के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने अपने निर्वासन के दौरान पांडवों को ‘अक्षय पात्र दिया था । उन्होंने इस कटोरे के साथ आशीष दिया था कि यह पात्र हमेशा असीमित मात्रा में भोजन से भरा रहेगा तथा कोई भी कभी भूखा नहीं रहेगा। 

अक्षय तृतीया के दिन, गंगा नदी पृथ्वी पर स्वर्ग से उतरी थी ।
 
इस दिन कुबेरा ने देवी लक्ष्मी जी की उपासना की थी, और इस तरह उन्हें भगवान के खजांची होने का काम सौंपा गया। 

जैन धर्म में, इस दिन भगवान आदिनाथ, जैनों के पहले भगवान की स्मृति में मनाया जाता है। 

धार्मिक क्रिया  
भगवान विष्णु के भक्त, अक्षय तृतीया के दिन देवता की पूजा करते है और उपवास रखते हैं। बाद में, चावल, नमक, घी, सब्जियां, फलों और कपड़े गरीबों को वितरित करके दान किया करते है। तुलसी का पानी भगवान विष्णु के प्रतीक के रूप में चारों ओर छिड़का जाता है। 


अक्षय तृतीया के दिन, कई लोग सोना और सोने से बने आभूषण भी खरीदते हैं। जैसा कि कहा जाता है कि सोना अच्छे भाग्य और धन का प्रतीक होता है , सोना खरीदना इस दिन पवित्र माना जाता है।

लोग इस दिन नया व्यापार उद्यम, निर्माण कार्य आदि शुरू करते है। 

अन्य अनुष्ठानों की तरह इस दिन लोग गंगा में एक पवित्र स्नान भी करते है , जौ को एक पवित्र आग में भेंट करते है, तथा प्रसाद बनाया जाता है और दान किया जाता है। 


भविष्य में अच्छा भाग्य सुनिश्चित करने के लिए आध्यात्मिक गतिविधियों जैसे ध्यान और पवित्र मंत्र का जप करना महत्वपूर्ण माना जाता है। 

Thursday, April 16, 2020

पृथ्वी दिवस पर निबंध || Earth Day Essay in Hindi || विश्व पृथ्वी दिवस ||...





Earth Day Essay in Hindi

'विश्व पृथ्वी दिवस' प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। विश्व पृथ्वी दिवस की स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के द्वारा 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप में की गयी और अब इसे 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है।

पृथ्वी हमारी धरोहर है, इसकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। प्रकृति ने हमें सूर्य, चाँद, हवा, जल, धरती, नदियां, पहाड़, हरे-भरे वन और धरती के नीचे छिपी हुई खनिज सम्पदा धरोहर के रूप में हमारी सहायता के लिए प्रदान किये हैं। प्रकृति द्वारा दी गई ये सभी वस्तुएं सीमित हैं। विश्व पृथ्वी दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण सुरक्षा के बारे में लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाना है।

यह एक वार्षिक आयोजन है, जिसे विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्थन प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया जाताा है। इस दिन विश्व स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कई समुदाय और एनजीओ, पृथ्वी सप्ताह का समर्थन करते हुए पूरे सप्ताह विश्व के पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर पृथ्वी को बचाने के लिए अनुकरणीय कदम उठा रहे हैं।

विश्व पृथ्वी दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण सुरक्षा के बारे में लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाना है। यह दिन इस बात के चिंतन-मनन का दिन है कि हम कैसे अपनी वसुंधरा को बचा सकते हैं।

Friday, April 10, 2020

कोरोना वायरस पर हिन्दी में निबंध || Covid-19 Essay || Hindi Essay on Cor...







कोरोनावायरस (Coronavirus) कई प्रकार के विषाणुओं (वायरस) का एक समूह है जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग उत्पन्न करता है। यह आरएनए वायरस होते हैं। इनके कारण मानवों में श्वास तंत्र संक्रमण पैदा हो सकता है विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया है। 
कोरोना वायरस बहुत सूक्ष्म लेकिन प्रभावी वायरस है। कोरोना का संक्रमण दुनियाभर में तेजी से फ़ैल रहा है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था। 

लातीनी भाषा में "कोरोना" का अर्थ "मुकुट" होता है और इस वायरस के कणों के इर्द-गिर्द उभरे हुए कांटे जैसे ढाँचों से इलेक्ट्रान सूक्षमदर्शी में मुकुट जैसा आकार दिखता है, जिस पर इसका नाम रखा गया था।





कोरोना वायरस क्या है?

कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।

लक्षण

Covid-19 / कोरोना वायरस में पहले बुख़ार होता है। इसके बाद सूखी खांसी होती है और फिर एक हफ़्ते बाद सांस लेने में परेशानी होने लगती है। कोरोना वायरस के गंभीर मामलों में निमोनिया, सांस लेने में बहुत ज़्यादा परेशानी, किडनी फ़ेल होना और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। बुजुर्ग या जिन लोगों को पहले से अस्थमा, मधुमेह या हार्ट की बीमारी है उनके मामले में ख़तरा गंभीर हो सकता है। ज़ुकाम और फ्लू में के वायरसों में भी इसी तरह के लक्षण पाए जाते हैं।



बचाव के उपाय?

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
इनके मुताबिक हाथों को साबुन से धोना चाहिए।
अल्‍कोहल आधारित हैंड रब का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है।
खांसते और छीकते समय नाक और मुंह रूमाल या टिश्‍यू पेपर से ढंककर रखें।
जिन व्‍यक्तियों में कोल्‍ड और फ्लू के लक्षण हों, उनसे दूरी बनाकर रखें।

कोरोना का संक्रमण फैलने से कैसे रोकें?

खांसते या छींकते वक़्त अपना मुंह ढंक लें।
सार्वजनिक वाहन जैसे बस, ट्रेन, ऑटो या टैक्सी से यात्रा न करें।
घर में मेहमान न बुलाएं।
घर का सामान किसी और से मंगाएं।
ऑफ़िस, स्कूल या सार्वजनिक जगहों पर न जाएं।
अगर आप और भी लोगों के साथ रह रहे हैं, तो ज़्यादा सतर्कता बरतें।
अलग कमरे में रहें और साझा रसोई व बाथरूम को लगातार साफ़ करें।
14 दिनों तक ऐसा करते रहें ताकि संक्रमण का ख़तरा कम हो सके।
अगर आप संक्रमित इलाक़े से आए हैं या किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहे हैं तो आपको अकेले रहने की सलाह दी जा सकती है। अत: घर पर रहें।



मास्क कौन और कैसे पहनें?



अगर आप स्वस्थ हैं तो आपको मास्क की जरूरत नहीं है।
अगर आप किसी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, तो आपको मास्क पहनना होगा।
जिन लोगों को बुखार, कफ या सांस में तकलीफ की शिकायत है, उन्हें मास्क पहनना चाहिए और तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।


कोरोना वायरस का संक्रमण हो जाए तब?

इस समय कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं है लेकिन इसमें बीमारी के लक्षण कम होने वाली दवाइयां दी जा सकती हैं।
जब तक आप ठीक न हो जाएं, तब तक आप दूसरों से अलग रहें।

Tuesday, April 7, 2020

लॉकडाउन क्या होता है-कर्फ्यू क्या होता है


लॉकडाउन

लॉकडाउन क्या होता है?
लॉकडाउन एक इमर्जेंसी व्यवस्था होती है। अगर किसी क्षेत्र में लॉकडाउन हो जाता है तो उस क्षेत्र के लोगों को घरों से निकलने की अनुमति नहीं होती है। जीवन के लिए आवश्यक चीजों के लिए ही बाहर निकलने की अनुमति होती है। अगर किसी को दवा या अनाज की जरूरत है तो बाहर जा सकता है या फिर अस्पताल और बैंक के काम के लिए अनुमति मिल सकती है। छोटे बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के काम से भी बाहर निकलने की अनुमति मिल सकती है।

क्यों किया जाता है लॉकडाउन?
किसी तरह के खतरे से इंसान और किसी इलाके को बचाने के लिए लॉकडाउन किया जाता है। दंगा रोकने के लिए लॉकडाउन किया जाता है। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन कई देशों में किया गया है। कोरोनावायरस का संक्रमण एक-दूसरे इंसान में न हो इसके लिए जरूरी है कि लोग घरों से बाहर कम निकले। बाहर निकलने की स्थिति में संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा। इसलिए कुछ देशों में लॉकडाउन जैसी स्थिति हो गई है।



कर्फ्यू क्या होता है?

कर्फ्यू का आदेश डीएम देता है किसी भी जिले के अधिकारी की जिम्‍मेदारी होती है कि वह जिले में सुरक्षा व्‍यवस्‍था को बनाए रखे। भारत में कर्फ्यू एक ऐसा आदेश है जिसके तहत एक निश्चित समय के बाद कुछ प्रतिबंधों को लागू कर दिया जाता है। सरकार की ओर से एक आदेश जारी कर लोगों को एक तय समय पर उनके घर लौटने को कहा जाता है। सा‍माजिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए कर्फ्यू लगाया जाता है।

144 का आदेश डीएम सीआरपीसी की धारा 144 के तहत कुछ प्रतिबंधों को लागू करता है और फिर स्थिति को देखते हुए वह कर्फ्यू का ऐलान भी कर सकता है। डीएम के पास यह अधिकार होते हैं कि वह ऑफिसों और जरूरी सरकारी प्रबंधों का निरीक्षण इस समय कर सकता है।

Monday, April 6, 2020

Short Essay on Guru Tegh Bahadur Ji in Hindi || गुरू तेगबहादुर जी || Gur...





गुरू तेगबहादुर जी

गुरू तेग बहादुर सिखों के नवें गुरु थे। देश, धर्म को बचाने के लिए गुरू तेगबहादुर जी ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।

उनके द्वारा रचित ११५ पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं

जीवन- गुरू तेगबहादुर जी का जन्म सिक्खों के आठवें गुरू श्री हरगोबिन्द जी के घर अमृतसर में 1621 ई० में हआ। गुरू तेग बहादुर जी ने गद्दी पर बैठते ही सिक्खों का संगठन किया। आनन्दपुर नाम का स्थान बसाया। पटना में गुरू तेग बहादुर जी के घर गुरू गोबिन्द सिंह जी का जन्म हुआ। उन्होने कश्मीरी पण्डितों तथा अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। औरंगजेब ने गुरू जी को गिरफ्तार कर लिया। गुरू जी को यातनाएं दी गईं। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने सबके सामने उनका सिर कटवा दिया।
गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।
गुरू जी सच्चे अर्थों में तेजस्वी, महात्मा और देशभक्त थे। धर्म, मानवता, सिद्धांतों के लिए शहीद होने वाले गुरु तेग बहादुर जी का स्थान सिख धर्म में विशेष महत्व रखता है। इन्हें "हिन्द-दी-चादर" के नाम से भी जाना जाता है। अभिमान और छल से रहित थे।