Tuesday, April 21, 2020
आदि शंकराचार्य पर निबंध || Simple & Short Essay on Adi Shankaracharya in...
आदि शंकराचार्य जी भारत मे एक महान दार्शनिक और धर्मप्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं। आदि शंकरचार्य का जन्म 788 ई. में केरल में कालपी अथवा 'काषल' नामक ग्राम में हुआ था। आदि शंकराचार्य जी के पिता जी का नाम शिवगुरु तथा माता जी का नाम सुभद्रा था।
इनके पिता जी ने इनकी माता जी के साथ सन्तान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की बहुत दिनों तक आराधना की थी जिसके बाद आदि शंकराचार्य जी का जन्म हुआ था इसीलिए इनके पिता जी ने इनका नाम शंकर रखा था। जब ये तीन ही वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया। जब ये पांच(5) वर्ष के थे तभी इनकी माता जी ने इनका यज्ञोपवीत संस्कार करा कर इनको गुरुकुल में वेदों के अध्ययन के लिए भेज दिया था।
ये बड़े ही मेधावी तथा प्रतिभाशाली थे। छह वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। इनके सन्यास धारण करने के सन्दर्भ में एक कथा प्रचलित है जिसमें बताया गया है कि जब इन्होंने अपनी माता जी से सन्यास धारण करने की अनुमति मांगी तो एक मात्र पुत्र होने के कारण इनकी माता ने आदि शंकराचार्य जी को सन्यास धारण करने से मना कर दिया।
परन्तु एक दिन जब ये नदी में नहा रहे थे तो एक मगरमच्छ ने इनके पैर को पकड़ लिया और इसी अवसर का लाभ उठा कर इन्होंने अपनी माता जी से कहा कि मुझे सन्यास धारण करने की अनुमति नही देंगी तो यह मगरमच्छ मुझे मार डालेगा।
आदि शंकराचार्य जी के प्राणों को संकट में देखकर इनकी माता जी ने इन्हें सन्यास धारण करने की अनुमति दे दी। जैसे ही इनकी माता जी ने इन्हें सन्यास धारण करने की अनुमति दी वैसे ही उस मगरमच्छ ने आदि शंकराचार्य जी के पैरों को भी छोड़ दिया।
आदि शंकर ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। उन्होने सनातन धर्म की विविध विचारधाराओं का एकीकरण किया। उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। वे चारों स्थान ये हैं- (१) ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, (२) श्रृंगेरी पीठ, (३) द्वारिका शारदा पीठ और (४) पुरी गोवर्धन पीठ। इन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था। ये शंकर के अवतार माने जाते हैं। इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य जी की जयंती, प्रत्येक वर्ष के वैशाख माह की शुक्ल पंचमी के दिन देश के सभी मठों में विशेष हवन पूजन तथा शोभा यात्रा निकाल कर मनाई जाती है।
32 वर्ष की अल्प आयु में सन् 820 ई. में केदारनाथ के समीप आदि गुरु शंकराचार्य स्वर्गवासी हुए थे।
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